Farmers protest: 6 फरवरी को किसानों का चक्का जाम, यूपी-उत्तराखंड में नहीं होगा, जानिए इससे जुड़ी बड़ी बातें
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों के विरोध में दो महीनों से ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने शनिवार 6 फरवरी को देशव्यापी चक्का जाम का ऐलान किया है। गणतंत्र दिवस पर की गई ट्रैक्टर रैली के बाद आंदोलनकारी किसानों की ओर से आयोजित यह पहला बड़ा कार्यक्रम है, जिसमें हिंसा देखने को मिली थी। इस चक्का जाम को संयुक्त किसान मोर्चा ने बुलाया है जो कृषि कानूनों का विरोध कर रहे 40 किसान यूनियनों की एक संस्था है। ये चक्का जाम तीन घंटे (दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक) का होगा। इस दौरान लोग अपने-अपने इलाकों में सड़कों को जाम करेंगे और रास्तों पर बैठकर विरोध दर्ज कराएंगे।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चक्का जाम नहीं
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने चक्का जाम को लेकर कहा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चक्का जाम नहीं किया जाएगा। इन दोनों राज्यों में जिला मुख्यालय पर किसान कृषि कानूनों के विरोध में केवल ज्ञापन दिए जाएंगे। दिल्ली के बारे में पूछे जाने पर टिकैत ने कहा कि दिल्ली में तो पहले से चक्का जाम है, इसलिए दिल्ली को इस जाम में शामिल नहीं किया गया है। हिंसा के डर से इन जगहों पर चक्का जाम टालने के सवाल पर टिकैत ने कहा कि हमारे कार्यक्रमों में कहीं हिंसा नहीं होती, कई जगहों पर हुई महापंचायतें इसका प्रमाण हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि हम सरकार से बात करना चाहते हैं, सरकार कहां पर है, वो हमें नहीं मिल रही।
चक्का जाम के जरिए एकजुटता दिखाने की कोशिश
भारतीय किसान यूनियन (दोआबा) के अध्यक्ष मंजीत सिंह राय के मुताबिक, इस चक्का जाम के लिए किसान दिखाना चाहते हैं कि वे एकजुट हैं। राय ने कहा, पूरा देश किसानों के साथ है। हमें सरकार को अपनी ताकत दिखानी है। किसान नेता ने कहा, दोपहर 3 बजे जब चक्का जाम ख़त्म होगा तो हम एक साथ एक मिनट के लिए अपनी गाड़ियों का हार्न बजाएंगे। उन्होंने कहा कि इंटरनेट बंद होने से हमें काफ़ी समस्या हो रही है। पूरा संयुक्त किसान मोर्चा यहीं से चक्का जाम कोर्डिनेट करेगा।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
इस बीच, चक्का जाम को लेकर दिल्ली पुलिस की किलेबंदी जारी है। चक्का जाम का सबसे ज्यादा असर पंजाब और हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिखने की संभावना है। ऐसे में वहां की पुलिस भी पूरी तरह मुस्तैद है। बता दें कि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 12 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है। सरकार ने डेढ़ साल के लिए कानूनों को टालने का प्रस्ताव दिया था मगर किसान नेता कानूनों को पूरी तरह से वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं। किसान मिनिमम सपोर्ट प्राइज (एमएसपी) पर भी कानून चाहते हैं।
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